Monday, May 21, 2012

लोकायुक्त पुलिस को विकास में रोड़ा बनाने का प्रयास

भोपाल // आलोक सिघंई

स्वास्थ्य संचालक डाक्टर अमरनाथ मित्तल पर पड़े लोकायुक्त के छापे ने मध्यप्रदेश सरकार को अपनी सोच में सुधार लाने का मौका दिया है। वास्तव में डाक्टर मित्तल के निवास पर पड़े छापे ने सरकार की भावनाओं तले पनपती दरिंदगी की कलई खोल दी है। जब 11 मई की सुबह भोपाल की लोकायुक्त पुलिस ने डाक्टर मित्तल के निवास पर छापा मारा और सुबह से ही मीडिया के माध्यम से जनता को बताना शुरु कर दिया कि इस छापे में डेढ़ सौ करोड़ की काली कमाई उजागर हुई है। लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। नोटों की गड्डियां लहराते पुलिस दल ने अपनी सफलता का भरपूर आनंद लिया। अखबारों ने बढ़ चढ़कर खबरें छापी और जनता को ये बताया कि स्वास्थ्य विभाग को डाक्टर मित्तल ने घोटालों का अड्डा बना दिया था। पुलिस के उत्साह का आलम ये था कि उसने डाक्टर मित्तल की बेटी की ससुराल को भी नहीं छोड़ा। सहारनपुर जाकर लोकायुक्त पुलिस ने बेटी के ससुर डाक्टर पांडे के घर की छानबीन भी कर डाली। डाक्टर मित्तल के पैतृक निवास, उनके भाईयों भतीजों के घर और तमाम ठिकाने तलाश मारे जिनका डाक्टर मित्तल से कोई सीधा संबंध नहीं था। इसके बाद पुलिस ने बताया कि डाक्टर मित्तल की संपत्ति तीन सौ करोड़ की है जिसे उन्होंने गुप्त स्थान पर छिपा दिया है। ये भी हो सकता है कि उनकी दौलत उनके मित्रों के पास हो। कपोल कल्पना के इस खुमार का बुखार तब उतरा जब पुलिस ने अपने छापे की समीक्षा की। 
 
सूत्रों की मानें तो आयकर विभाग को दी गई जानकारी में लोकायुक्त पुलिस के एसपी सिद्धार्थ चौधरी ने बताया है कि डाक्टर मित्तल के पास से उन्हें लगभग तीन करोड़ की अघोषित संपत्ति मिली है। कहां तीन सौ करोड़ और कहां तीन करोड़। इस राशि का भी हिसाब यदि डाक्टर मित्तल के सीए ने दे दिया तब क्या कहा जाएगा। लोकायुक्त पुलिस के बड़े बड़े दावे दिन बीतते बीतते धराशायी हो रहे हैं। पुलिस बयानों के आधार पर बड़ी बड़ी खबरें छापने वाले तथाकथित धुरंधर पत्रकार भी अब बगलें झांक रहे हैं। इस छापे के बाद से स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा अब तक अपने विभाग के कार्यकलापों पर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस मसले से ध्यान हटाने के लिए कह रहे हैं कि किसी भ्रष्टाचारी को छोड़ा नहीं जाएगा। मगर उनकी सरकार अब तक क्या कर रही थी इस पर बोलने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है। बेहद ईमानदार कहे जाने वाले स्वास्थ्य आयुक्त डाक्टर मनोहर अगनानी चुप्पी साधे हैं कि आखिर उनकी नाक तले ये कथित भ्रष्टाचार कैसे पनपता रहा। नए स्वास्थ्य सचिव प्रवीर कृष्ण खामोश हैं कि वे कैसे उन योजनाओं की मंजूरियां देते रहे जिनसे स्वास्थ्य विभाग कथित भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया। खामोश तो पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुधी रंजन मोहंती भी हैं जिनके कार्यकाल में इंदौर के दवा माफिया का एजेंट डाक्टर अशोक शर्मा बर्खास्तगी के द्वार से वापस लौटा लिया गया था।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जबसे भ्रष्टाचार पर हमला बोलकर ये जताने की कोशिश शुरु की है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ है तबसे सत्ता के दलालों ने अपने विरोधियों को निपटाने की मुहिम भी शुरु कर दी है। इस बदले माहौल में जांच एजेंसियां भी बढ़ चढ़कर हमले बोल रही हैं। अब जब खाना पूर्ति का नाटक रंगमंच पर खेला जा रहा हो तब सुशासन की बात कैसे की जा सकती है। विश्लेषण किया जाए तो पता चलेगा कि सरकार के सलाहकार कैसे उसका वध करने की साजिश में शामिल हैं। ये न तो भाजपा को समझ आ रहा है और न उसकी सरकार को। मुख्यमंत्री सचिवालय से जनसंपर्क आयुक्त को बाकायदा ये सलाह दी गई कि भ्रष्टाचार पर खबरों को अखबारों में खूब जगह दिलवाई जाए। विज्ञापन की डोर से बंधे समाचार पत्रों ने सरकार की इस मंशा को समझा और अपने रिपोर्टरों को भ्रष्टाचार की कहानियां गढ़ने में जुटा दिया। मुख्यमंत्री को समझाया गया कि जैसे जैसे ये बात स्थापित होगी कि भ्रष्टाचारियों को पकड़ा जा रहा है वैसे वैसे सरकार की छवि और निखरेगी। छवि बनाने की ये सलाह कैसे सरकार की नाक भी कटा सकती है ये किसी सलाहकार ने नहीं बताया। 
अब डाक्टर मित्तल पर पड़े छापे से इस रणनीति की दरिंदगी साफ समझी जा सकती है। पुलिस ने जब छापा मारा और एक अटैची में भरे नोट बरामद किए तो उसे डाक्टर मित्तल ने बताया कि ये नोट उनकी जमीन के एक हिस्से के सौदे की पेशगी हैं। जो सोना बरामद हुआ वो कहां से आया इसकी जानकारी डाक्टर मित्तल के सीए तैयार कर रहे हैं। पुलिस ने वर्ष 2004 में खरीदी गई डाक्टर मित्तल की जमीन को उनकी अघोषित आय बताया जबकि इस जमीन की जानकारी सरकार को भी दी गई है और आयकर विभाग को भी। इस जमीन की जानकारी तो स्वास्थ्य विभाग की वेवसाईट पर जमाने से पड़ी है जिसे कोई भी देख सकता है। जमीन खरीदी की अनुमति शासन ने नहीं दी तो इसके लिए आवश्यक कार्रवाई वो अब भी कर सकता है पर किसी अधिकारी कर्मचारी को जमीन खरीदने से रोका नहीं जा सकता। शाही अंदाज में रहना भी कोई गुनाह नहीं है। इसके बावजूद बार बार ये कहा गया कि एक महाभ्रष्ट और पकड़ा गया। 
इस छापे की आधारशिला जिस तरीके से रखी गई वो काफी बैचेनी पैदा करती है। राज्य सरकार ने शानदार गोपनीय चरित्रावली और बेहतर प्रशासकीय अनुभव के आधार पर डाक्टर मित्तल को स्वास्थ्य संचालक बनाया था। पूर्व स्वाथ्य संचालक डाक्टर योगीराज शर्मा और डाक्टर अशोक शर्मा पर पड़े छापों और उनसे बरामद दौलत से बैचेन तत्कालीन आला अफसरों ने विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक तमाम सावधानियां रखते हुए की थी। इस चयन समिति में वे खुर्राट अफसर शामिल थे जिन्हें अपनी शानदार प्रशासनिक कार्यशैली के कारण जाना जाता है। डाक्टर मित्तल का चयन स्वास्थ्य विभाग में चल रही धींगामुश्ती पर विराम लगाने के लिए ही किया गया था। जबकि इंदौर के दवा सप्लायर चाहते थे कि डाक्टर अशोक शर्मा या उनके किसी प्रतिनिधि को ही मौका दिया जाए। इसीलिए उन्होंने पदोन्नति में पिछड़े डाक्टर अशोक वीरांग को मोहरा बनाया और हाईकोर्ट में डाक्टर मित्तल की पदोन्नति में अपनाई गई चयन प्रक्रिया को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उनकी अपील पर पदोन्नति प्रक्रिया में डाक्टर वीरांग को भी मौका देने के निर्देश दिए। इसके लिए डाक्टर मित्तल को संचालक पद से हटा दिया गया। बाद में ये मुकदमा डाक्टर वीरांग हार गए और सरकार ने डाक्टर मित्तल को ही दुबारा संचालक बना दिया । 
सरकार की पहल पर डाक्टर मित्तल ने बेहतर प्रशासनिक शैली का सूत्रपात किया और तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन की दवा खरीद सूची के आधार पर प्रदेश की अस्पतालों के लिए दवा खरीद की नई प्रणाली लागू की। नतीजा ये हुआ कि अस्पतालें सभी जरूरी दवाओं से पट गईं और भोपाल के स्वास्थ्य मुख्यालय में दवा खरीद के लिए कमीशनबाजी करने वाले दलालों की दूकान पिट गई। हैरत अंगेज बात ये है कि जिस सुशासन के लिए सरकार अब तक अपने अफसर की पीठ थपथपाती रही है वह उस पर पड़े छापे के बाद खामोश है। सरकार पर दबाव संघ से जुडे़ कुछ सत्ता के दलालों का भी है। जो चाहते थे कि स्वास्थ्य विभाग प्रदेश के अस्पतालों में मंहगी दरों पर सीएफएल और सोलर पैनल खरीदे। इलाज में प्रयोग आने वाले उपकरण मनमानी दरों पर खरीदे जाएं। जब डाक्टर मित्तल ने दो टूक शब्दों में इंकार कर दिया कि वे बजट की बर्बादी नहीं होने देंगे तो इन्हीं दलालों ने उन्हें चेतावनी भी दी कि वे उन्हें स्वास्थ्य संचालक पद पर नहीं बने रहने देंगे। इंदौर की दवा लाबी के प्रतिनिधि डाक्टर अशोक शर्मा और कीटनाशकों का सप्लायर कीर्ति जैन, भोपाल ब्लड बैंक के डाक्टर राजा माईती,इंदौर दवा माफिया का प्रतिनिधि दीक्षित इस कड़ी के सबसे सक्रिय सदस्य थे जिन्होंने लोकायुक्त पुलिस को कल्पित सूचनाएं देकर छापे के लिए तैयार किया था। अब जबकि छापे की कार्रवाई हो चुकी है और लोकायुक्त पुलिस बरामदगी को लेकर अपना सिर धुन रही है तब सरकार की मुहिम की समीक्षा करना और भी जरूरी हो जाता है। लोकायुक्त पुलिस शुरु से छापे को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के आडिटर गणेश किरार के घर पड़े छापे से जोड़ रही है। गणेश किरार रिश्ते में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मामा बताया जाता है। यदि इसे राजनैतिक नजरिए से देखा जाए तो मुख्यमंत्री के सलाहकारों ने शिवराज सिंह चौहान पर प्रहार करने के लिए ही गणेश किरार पर छापा पड़वाने में रुचि दिखाई थी। इस उद्देश्य को छिपाने के लिए घोषित लक्ष्य डाक्टर मित्तल बनाए गए। इस उठापटक में जो क्षति प्रशासन को पहुंची उसका आकलन अभी तक सरकार नहीं कर पाई है। 
 
सरकार के जिन फैसलों से प्रदेश के अस्पतालों में दवाएं सहज सुलभ हो गईं हैं उन पर अभी तक स्वास्थ्य मंत्री की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। थानेदारी की सोच वाले अफसर और पत्रकार डाक्टर मित्तल के जिस आलीशान आवास को महल बता रहे हैं वे प्रदेश के असपतालों में हुए सुधारों की ओर निगाह भी नहीं डालना चाहते। ये बात भी उनके भेजे में नहीं घुस रही कि जो अफसर प्रदेश के अस्पतालों को महल की तरह आलीशान और सुविधापूर्ण बनाने का स्वप्न देखता हो उस पर भ्रष्टाचार का लांछन लगाकर वे प्रदेश का अहित ही कर रहे हैं। जो लोग बढ़ चढ़कर कहानियां सुना रहे हैं उनकी संपत्तियों का आकलन किया जाए तो अघोषित आय क्या होती है ये आसानी से समझा जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग का बजट तीन हजार छह सौ करोड़ रुपए का है।इसमें से दो हजार छह सौ करोड़ रुपए राज्य सरकार के हैं और एक हजार करोड़ रुपए केन्द्र सरकार की योजनाओं का है। इस राशि को खर्च करने की व्यवस्था स्वास्थ्य संचालक की ही देखरेख में की जाती है। इस बजट को खर्च करने के दौरान यदि डाक्टर मित्तल ने कमीशनबाजी की होती तो पुलिस को उनके पास से वाकई तीन सौ से चार सौ करोड़ रुपए बरामद जरूर होते। आज वह पुलिस आयकर विभाग को तीन करो़ड़ की अघोषित आय की सूचना दे रही है तो ये आसानी से समझा जा सकता है कि लोकायुक्त पुलिस ने कौआ कान ले गया की आवाज पर ये छापा डाला है। ये तो नहीं कहा जा सकता कि लोकायुक्त पुलिस ने दवा सप्लायरों और सत्ता के दलालों से सुपारी लेकर ये छापा डाला पर ये जरूर कहा जा सकता है कि पुलिस को इस छापे के लिए मजबूर किया गया है। एक आवाज ये भी लगाई गई कि संचालक का पद किसी आईएएस अफसर को दे दिया जाए। इस आवाज के पीछे कौन लोग हैं उनका मकसद क्या है ये अच्छी तरह समझा जा सकता है। तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन की प्रणाली से दवाओं की खरीद अब ग्लोबल टेंडर के आधार पर की जाती है। इन दवाओं की दरें इतनी कम हैं कि स्थानीय दवा उत्पादक इस होड़ से बाहर हो गए हैं। उन्होंने दवाओं की उत्पादन लागत घटाने के बजाए इस नीति को ढप करने में ही अपने संसाधन झोंक दिए हैं। हालत ये है कि दवाओं की खरीद में स्थानीय दवा निर्माताओं का योगदान 45 प्रतिशत से घटकर मात्र 7 प्रतिशत रह गया है। अपनी हठधर्मिता से ये दवा उत्पादकों ने टेंडर ही नहीं डाले और सरकार की नीति को हाईकोर्ट में चुनौती दी। विद्वान उच्च न्यायालय ने दवा उत्पादकों के पक्ष को गलत माना और सरकार की नीति के पक्ष में फैसला दिया। तबसे दलालों को पालने पोसने वाला ये कुनबा सरकार पर दबाव बनाने में जुटा है कि किसी भी तरह तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन से दवा खरीद वाली नीति को बंद कर दिया जाए। 
 
 इस नीति को असफल करने के लिए जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों ने नई चाल चली। वे मुंबई या बंगलौर में बैठे दवा उत्पादकों से एकमुश्त दवा खरीदने के बजाए हजार दो हजार रुपए की दवाएं खरीदते हैं। दवा सप्लायरों को इसके लिए ज्यादा ट्रांसपोर्ट शुल्क देना पड़ता है। यही नहीं इन दवाओं के भुगतानों में अनावश्यक देरी की जाती है, जबकि टेंडर की शर्तों के आधार पर भुगतान भी आन लाईन ही किया जाना है। जिला चिकित्सा अधिकारियों की इस हरकत पर सरकार को कड़ा रुख अपनाना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत बैठकों में स्वास्थ्य मंत्री ये कहते सुने गए कि दवाओं की खरीद में देरी होने लगी है इसलिए इस पैटर्न को बंद करना होगा। जो दवा खरीद प्रणाली तमिलनाडू में सफल है, कई राज्य उसका अनुकरण कर रहे हैं वह शैली मध्यप्रदेश में कैसे असफल हो सकती है। ये जरूर था कि सरकार ने इस प्रणाली को अपनाने के लिए पूरा स्टाफ ही नहीं दिया और अकुशल कर्मचारी ही आज भी इस प्रणाली को चला रहे हैं। अनुबंध की शर्तों के आधार पर तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन को स्थानीय अमले को प्रशिक्षण भी देना है ताकि स्थानीय कर्मचारियों का अमला दवा खरीद के इस पैटर्न को अपना ले और राज्य सरकार को तमिलनाडू ड्रग कार्पोरेशन को दी जा रही अनावश्यक धनराशि न देना पड़े। इस दवा खरीद प्रणाली की तारीफ कई बार मुख्यमंत्री स्वयं कर चुके हैं लेकिन अब वे अपनी ही सरकार की अच्छी पहल पर खामोश हैं।

सरकार को ये अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि लोकायुक्त पुलिस पर दबाव बनाकर व्यक्तिगत रंजिश भुनाने वाले लोग वास्तव में जनता के दुश्मन हैं। पुलिस को इनके नाम भी उसे उजागर करने चाहिए ताकि प्रदेश के लोग उन्हें पहचान सकें और एक बेहतर अफसर के प्रति अपनी धारणाओं में सुधार कर सकें। सरकार को सत्ता के दलालों से आतंक से मुक्त होना होगा। गुजरात के यशस्वी मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकास की राह में रोड़ा साबित होने वाले पुलिसिया तंत्र को अपने घर बिठा रखा था। केन्द्र का दबाव न होता तो वहां लोकायुक्त जैसी संस्था की जरूरत ही नहीं थी। अब जबकि लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई लगातार आरोपों से घिर रही है तब वहां पदस्थ अफसरों को ये ध्यान में रखना होगा कि वे कहीं दलालों के प्रतिनिधि बनकर प्रदेश की विकास यात्रा को अवरुद्ध तो नहीं कर रहे हैं।
 ·  · 
  • Kailash Gupta and 5 others like this.
    • Alok Singhai मध्यप्रदेश को गुजरात से आगे ले जाना है तो थानेदारी उन पर करो जो जनता के दुश्मन हैं।
    • Kr Ashok S Rajput corrupt dr mittal ke samarthan kya jordaar lekh likha hai,,or bhandgeeri kee hai....,phir khenge Anna or Ramdeo zindabaad.....
      about an hour ago ·  ·  1
    • Alok Singhai अशोक भाई जो भ्रष्ट है वो जरूर मरेगा।हमने उसका ठेका नहीं लिया, पर जो बदमाशी पर्दे के पीछे की जा रही है उसे भी तो देखिए।
    • Kr Ashok S Rajput government kee prob agency main kaam krne wale aap or hum jaise hee hote hai.....are raid hui... check-back hua...or teen crore kam amount nhi hota.....
    • Alok Singhai ये तीन करोड़ का आकलन लोकायुक्त पुलिस का है अभी आयकर विभाग को तय करना है कि ये आकलन सही है या नहीं। पहले दिन से डेढ़ सो करोड़ की संपत्ति बरामद करने की रट लगाने वाले आखिर जनता को कब तक बेवकूफ बनाते रहेंगे। भ्रष्टाचारियों को उजागर करना पुलिस और प्रेस दोनों का काम है। क्या बगैर छानबीन के उन्हें झूठ प्रचारित करने दिया जाए।इन छद्म कार्रवाईयों की आड़ में भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है।
      about an hour ago ·  ·  1
    • Virendra Jain ये समाचार जिस ढंग और भाषा में लिखा गया है उससे निष्पक्षता प्रकट नहीं होती अपितु रक्षात्मक लगता है । इसमें राशि में आये अंतर के कारणों को भी सामने अना चाहिए,क्योंकि लोकायुक्त पुलिस से कहीं तो त्रुटि हुयी है और वह इतनी नासमझ भी नहीं हो सकती। सोना और ज़मीनों के भाव, पोस्टिंग का समय, कुल बजट और उसके कंज्यूम का समय आदि भी आता तो ठीक रहता।
      about an hour ago ·  ·  1
    • Alok Singhai वीरेन्द्र जी आपका कहना सही है कि रक्षात्मक लेख है। लोकायुक्त पुलिस अपना काम कर रही है। इस पूरे एपीसोड में संयोग है कि कई घटनाओं के हम प्रत्यक्षदर्शी भी रहे हैं। जो बदमाश जनता की स्वास्थ्य सेवाओं में सेंधमारी करना चाहते हैं हम उनका पक्ष कैसे ले सकते हैं।
    • Virendra Jain ये तो विभग शुरू से ही बदनाम रहा है और इसकी हर सीट बिकती रही है इसका भी मुझे पता है। पर जब श्रीमती अलका मित्तल एक करोड़ रुपये हर महीन मंत्री को पहुँचाने की बात कहती हैं तब राशि इतनी कम भी नहीं हो सकती
      58 minutes ago ·  ·  1

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